संज्ञा सर्वनाम के जिस रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य में क्रिया के साथ जाना जाए कारक कहते हैं। आसान भाषा में अगर इसे समझें तो, “वाक्य के साथ प्रयोग होने वाला वो शब्द जिसका क्रिया के साथ सीधा संबंध स्थापित हो, उसे कारक कहा जाता है।” कारक संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का वो रूप है जिसका सीधा सम्बन्ध क्रिया से है। किसी काम को करने वाला कारक यानी कि जो भी उस काम को करने में मुख्य भूमिका निभाता है, वह कारक कहलाता है।
विभक्तियाँ
संज्ञा और सर्वनाम का सम्बन्ध क्रिया या दूसरे शब्दों से बताने के लिए उनके साथ जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है उन्हें विभक्ति कहते हैं।जैसे ने, से, को,केलिए, मैं,पर, का, की, हे,अरे आदि।
कारक के भेद-
1. कर्ता(Karta Karak): कर्ता के वाक्य में वह शब्द होता है, जो कार्य का कर्ता होता है। यह कारक प्रधानतः क्रियाविशेषण और संज्ञा के पीछे पड़ता है। जैसे – “राम ने किताब पढ़ी।” यहां ‘राम’ कर्तृक कारक है।
2. कर्मकारक (Karmakarak): कर्म के वाक्य में वह शब्द होता है, जो कार्य का कर्म होता है। यह कारक प्रधानतः क्रिया के पीछे पड़ता है। जैसे – “राम ने किताब पढ़ी।” यहां ‘किताब’ कर्मकारक है।
3. करण कारक– से
जिस साधन यह माध्यम से क्रिया होने का बोध होता है उसे करण कारक कहते हैं।जैसे राधा ने बेलन से गोल गोल रोटियां बनाई है।
4. सम्प्रदान कारक– को के लिए- कर्ता जिसके लिए काम करता है या जिसे कुछ देता है उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। जेसे रक्षाबंधन पर मैंने बुआ को उपहार दिया।डॉक्टर ने मरीज के लिए दवा लिखी।
5. अपादानकारक (Apadanakarak): इसका उपयोग वह वाक्य में होता है, जिसमें कार्य का आधार या विषय बताया जाता है। यह कारक प्रधानतः पोषणवाचक और ज्ञानवाचक संज्ञा या सर्वनाम के पीछे पड़ता है। जैसे – “मैं गुरुकुल में पढ़ता हूँ।” यहां ‘गुरुकुल’ अपादानकारक है।
6. संबंधकारक (Sambandhakarak): इसका उपयोग उस वाक्य में होता है, जिसमें क्रिया द्वारा कार्य किया जाता है। यह कारक संज्ञा या सर्वनाम के पीछे पड़ता है। जैसे – “मैं उससे बात करता हूँ।” यहां ‘उससे’ संबंधकारक है।
7.अधिकरण कारक – संज्ञा का वो रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहा जाता है। इसके विभक्ति चिह्न ‘में’ और ‘पर’ होते हैं।
8. सम्बोधक (Sambodhak): इसका उपयोग वह वाक्य में होता है, जिसमें संबोधन किया जाता है। यह कारक प्रधानतः संबोधनवाचक संज्ञा है।